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समय और सोच दोनों परिवर्तनशील हैं। ये दोनो एक-दूसरे पर निर्भर हैं और शायद इसिलिए एक-दूसरे की अच्छी दोस्त भी हैं । समय के साथ मनुष्य की सोच बदल जाती है और मनुष्य की सोच बदलने से उसके समय में बदलाव आता है।
कलतक जो मिट्टी में लोट-पोट होकर खुद को आनन्दित पाता था, आज उसे इस मिट्टी से दुर्गन्ध आती है।कलतक जिसे राजनिति से प्रेम न था, आज राजनेता बना फिर रहा है। जो कभी डाकु था, आज समाज सेवक बनकर लोगों की रक्षा कर रहा है। ये सभी घटनाएँ मनुष्य के सोच में समय के साथ बदलाव आने से घटती है।
प्रत्येक मनुष्य अपने सोच के अनुसार ही सही और गलत के बीच की एक रेखा खींच लेता है, जिसके परिपेक्ष वह खुद को तथा समाज को देखता है। उस रेखा के अन्दर की चीजें उसे सही प्रतीत होती है तथा बाहर की गलत। और उसकी यह रेखा समय के साथ बदलती रहती है। क्योकि समय के साथ उसकी सोच बदलती रहती है।
वस्तुतः मनुष्य की सोच ही उसके सभीं समयों(भूत,वर्तमान,भविष्य) तथा परिस्थितियोँ का द्दोतक है। और यही सोच उसकी कर्मशक्ति तथा ईच्छाशक्ति को प्रभावित करती है।
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